असोसिएटेड चेम्बरर्स आफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री आफ इंडिया (एसोचैम) का अनुमान है कि वर्ष 2020में 4.5 लाख भारतीय विद्यार्थी विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने गये और उन्होंने 13.5अरब डालरका खर्च किया। वर्ष 2022 हैं। में यह खर्च 24 अरब डालर यानी लगभग दो लाख करोड़ रुपये रहा और रेडसियर स्टार्टजी कंस्लटेंट की रिपोर्टके अनुसार 2024 तक यह खर्च 80 अरब डालर यानी सात लाख करोड़ रुपयेतक पहुंच सकता है, जब अनुमानित 20 लाख भारतीय विद्यार्थी विदेशों में पढ़नेके लिए जायेंगे। केन्द्रीयमंत्री श्री. मुरलीधरनने 25मार्च 2022 को लोकसभाको सूचित किया किया कि वर्तमानमें 13 लाख भारतीय विद्यार्थी विदेशों में पढ़ रहे हैं। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है सरकारके इस वक्तव्यके अनुसार वर्ष 2021 में 4.44 लाख विद्यार्थी विदेशों में पढ़ने गये। एक अन्य सरकारी वक्तव्यके अनुसार नवंबर 30, 2022 तक विदेशोंमें पढ़ने जानेवाले विद्यार्थियोंकी संख्या 6.46 लाख थी, यानी 45 प्रतिशत की वृद्धि। यदि राज्यवार ब्यौरा देखें तो वर्ष 2021 तक विदेशों में पढ़ने जानेवाले विद्यार्थियोंमें 12 प्रतिशत पंजाबसे, 12 प्रतिशतसे ही आंध्र प्रदेशसे और आठ प्रतिशत गुजरातसे थे। यदि युवाओंकी कुल संख्याके अनुपात में देखा जाय तो पंजाबसे प्रत्येक हजारमेंसे सात युवा, आंध्र प्रदेशमें प्रति हजारमें चार युवा और गुजरातसे प्रति हजारमेंसे कमसे कम दो युवा विदेशों में हर साल पढ़ने जा रहे हैं। यदि वर्ष 2016 से 2022 के संचयी संख्या लें तो स्थिति काफी भयावह दिखाई देती है। पंजाब में यह संख्या 50 प्रति हजार, आंध्र प्रदेशमें 30 प्रति हजार और गुजरातमें 14 प्रति हजार है।
विदेशों में पढ़ने जानेवाले विद्यार्थियोंकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि कई कारणोंसे चिन्ताका विषय है। सबसे ज्यादा चिन्ता इस बातकी है कि ये युवा पढ़ाई और रोजगारकी तलाशमें विदेशोंको पलायन कर रहे हैं और इस कारण देशके समक्ष युवा शक्तिके पलायनकी समस्या बढ़ रही है, इससे देशके उद्योग-धंधोंके लिए श्रम शक्तिकी कमीकी समस्या भी आ सकती है। इसके अलावा देशकी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा विदेशोंमें जा रही है। ऐसा देखनेमें आ रहा है कि उनके माता-पिता अपनी परिसंपत्तियोंको बेचकर इन युवाओंको विदेशों में पढ़नेके लिए भेज रहे हैं। एक समय था कि विदेशों में रह रहे भारतीयोंके माध्यम से पंजाब के गांवोंमें बड़ी मात्रामें विदेशोंसे धन आता था। विदेशों में पढ़ाईके इस क्रेजके चलते यह प्रक्रिया उलट हो गयी है, यानी अब विदेशोंसे धन आनेके बजाय विदेशोंको धन भेजा जा रहा है। ऐसेमें जब वर्ष 2024 तक विदेशों में पढ़ने जानेवाले विद्यार्थियोंकी संख्या 20 लाख और उनके द्वारा खर्च की जानेवाली राशि 80 अरब डालर पहुंच जायगी तो यह देशके लिए अत्यंत संकटकारी स्थितिका कारण बनेगा। गौरतलब है कि युवाओंका शिक्षाके लिए विदेशों में पलायन, देशमें शिक्षा सुविधाओंकी कमीकी वजहसे नहीं है। वास्तवमें देशमें पिछले दो-तीन दशकोंमें शिक्षाके क्षेत्रमें भारी प्रगति हुई है। यदि उच्च शिक्षामें विद्यार्थियोंका प्रवेश देखें तो 1990-91 में जहां मात्र 49.2 लाख विद्यार्थियनि उच्च शिक्षण संस्थानोंमें प्रवेश लिया, यह संख्या वर्ष 2020- 21 में 414 लाखतक पहुंच गयी। मोटे तौरपर उच्च शिक्षामें प्रवेश लेनेवाले विद्यार्थियोंकी संख्या पिछले 30 वर्षोंमें दस गुणासे भी ज्यादा हो चुकी है। यदि उच्च शिक्षा संस्थानोंकी बात की जाय तो देखते हैं कि वर्ष 2021 में देशमें 1113विश्वविद्यालय और समकक्ष
संस्थान, 43796महाविद्यालय और अन्य स्वतंत्र संस्थान 11296थे। इसी वर्ष देशमें उच्च शिक्षा संस्थानों में 15.59 लाख शिक्षक कार्यरत थे। देशमें कई विश्वविद्यालय केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैं और कई अन्य राज्यस्तरीय विश्वविद्यालय हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में निजी विश्वविद्यालय हैं और कई विश्वविद्यालय सम यानी डीम्ड विश्वविद्यालय देशमें कई विश्वस्तरीय प्रबंधन एवं इंजीनियरिंग संस्थान हैं, जिनसे शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी वैश्विक कम्पनियोंमें उच्च पदोंपर आसीन हैं जहांतक शिक्षा संस्थानोंमें प्रवेशके लिए फीसका सवाल है, अधिकांश भारतीय शिक्षा संस्थानोंमें फीस विदेशी संस्थानोंमें फीससे कहीं कम है और जिन विदेशी संस्थानोंमें भारतीय युवा प्रवेश ले रहे हैं, उनमें से अधिकांशका स्तर अत्यंत नीचा है तो सवाल उठता है कि भारी-भरकम राशि खर्च कर भारतके युवा विदेशी शिक्षा संस्थानोंमें प्रवेश क्यों लेते हैं। इसका सीधा उत्तर यह है कि विदेशोंमें जानेवाले अधिकांश विद्यार्थी उच्चस्तरीय शिक्षामें प्रवेश लेकर वास्तवमें कोई उच्चस्तरीय डिग्री प्राप्त करनेके लिए जाते हैं, ऐसा नहीं है। आस्ट्रेलिया, कनाडा और यहांतक कि इंग्लैंड समेत अन्य यूरोपीय देशोंमें जानेवाले भारतीय विद्यार्थियोंका वास्तविक लक्ष्य शिक्षा प्राप्त करना नहीं, बल्कि वहां रोजगार प्राप्त करना है। लेकिन भारतीय युवा यह समझने के लिए तैयार नहीं है कि इन देशोंमें भी रोजगारकी भारी कमी है। कई देशों में वहांके स्थानीय लोग भारतीय एवं अन्य देशोंसे आनेवाले युवाओंके खिलाफ हिंसाकी वारदातें भी देखनेको मिल रही हैं। देशसे जानेवाले अधिकांश युवा विद्यार्थी वहां रोजगार प्राप्त करनेमें असफल हो रहे हैं और उन्हें स्वदेश वापस लौटना पड़ता है, जिसके कारण वे भारी कुण्ठाका भी शिकार हो रहे हैं।
चूंकि व्यक्तिगत तौरपर विदेशों में जानेवाले युवा विद्यार्थी, पूर्वमें विदेशों में जानेवाले भारतीयोंकी सफलताकी गाथाओंसे प्रभावित होकर विदेशोंकी ओर रुख कर रहे हैं। लेकिन वे यह समझ नहीं पा रहे कि आज कनाडा, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशोंमें, जहां वे शिक्षा संस्थानोंमें प्रवेश ले रहे हैं, वे शिक्षा संस्थान स्वयंके आस्तित्वको बचाने हेतु भारतीय विद्यार्थियोंको आसानीसे अपनी शिक्षण संस्थानोंमें प्रवेश दे रहे हैं। यही नहीं भारतीय और अन्य देशोंके अति इच्छुक विद्यार्थियोंसे भारी फीस ऐंठने हेतु शिक्षाकी कई दुकानें भी खुल रही हैं, जिनका वास्तविक शिक्षासे कोई सरोकार नहीं है। ऐसेमें केन्द्र और राज्य सरकारोंको विदेशों में शिक्षा प्राप्त करनेके इच्छुक युवाओंको इस हेतु वास्तविकतासे अवगत करानेके लिए विशेष प्रयास करनेकी जरूरत है, ताकि वे विदेशों में जाकर अपने माता-पिताकी गाढ़ी कमाईको यूं ही न गवा दें। गौरतलब है कि पिछले लगभग दो दशकोंसे भारतके कई नागरिक एजेंटोंके माध्यम से विदेशोंमें, खास तौरपर खाड़ी देशोंमें रोजगारकी तलाशमें गये और वहां उन्हें कई प्रकारकी समस्याओंका सामना करना पड़ा। इन युवाओंके पासपोर्टतक एजेंटोंके द्वारा कब्जा लिये जाते थे और उनका तरह-तरहसे शोषण भी किया जाता था उन्हें अत्यंत अमानवीय परिस्थितियों में रहना पड़ता था, ऐसेमें भारत सरकार द्वारा विविध प्रकारके प्रयासोंसे समझानेकी कोशिश की गयी और सरकारने एजेंटोंके पंजीकरणको अनिवार्य किया और विदेशों में जानेवाले भारतीयोंके हित संरक्षणके लिए विभिन्न प्रकारके प्रयास भी किये। इसी तर्जपर देशके अनभिज्ञ युवा जो विदेशों में शिक्षाके नामपर ठगे जा रहे हैं, उन्हें इस समस्यासे बचानेके लिए सरकारको प्रयास करने होंगे। समाजके प्रबुद्ध वर्गको भी इस हेतु आगे आना होगा।