शिव सेवा संघ कार्यकर्ताओं ने कांवरियो की सेवा
रिपोर्ट – मनोज मोदनवाल / फूलपुर, आजमगढ़
फूलपुर-आजमगढ़: सावन माह के तीसरे सोमवार को लेकर रविवार शाम से ही कांवरिया बंधुओं का हुजूम दुर्वासा धाम स्थित तमसा और मंजूषा नदी के संगम तट पर उमड़ पड़ा। कांवरियों ने सुख-समृद्धि की मंगल कामना के साथ संगम में डुबकी लगाई। इसके बाद, उन्होंने भगवान दुर्वेस्वर महादेव और मुंडेश्वर नाथ महादेव का जलाभिषेक किया और अपनी कांवर लेकर गंतव्य स्थानों के लिए प्रस्थान किया। पूरे क्षेत्र में ‘हर हर महादेव’ और ‘बोल बम’ के जयकारों की गूंज सुनाई देती रही।
आसपास के गांवों के कांवरिया बंधुओं ने भी जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक किया। डीजे की धुन पर कांवरिया समूह झूमते हुए आगे बढ़ रहे थे, जिससे भक्तिमय माहौल और भी जीवंत हो उठा। शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की लंबी कतारें अपनी बारी की प्रतीक्षा में खड़ी थीं, सभी पूरी श्रद्धा के साथ जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करने को उत्सुक थे।
क्षेत्र के प्रमुख शिवालयों जैसे दुर्वासा धाम के दुर्वेस्वर महादेव, मुंडेश्वर नाथ महादेव, श्री शंकर जी तिराहा, राम जानकी मंदिर, नागा बाबा मंदिर, और बाबा परमहंस जी मंदिर में श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, बेलपत्र, फल, फूल, चंदन आदि से विधि-विधान से पूजन-अर्चन किया। कई घरों में श्रद्धालुओं ने स्वयं मिट्टी के शिवलिंग बनाकर रुद्राभिषेक भी किया।
शंकर जी तिराहा पर शिव सेवा संघ के कार्यकर्ताओं ने कांवरिया बंधुओं की सेवा के लिए जलपान और विश्राम की उत्तम व्यवस्था की। निहाल मोदनवाल, बृजेश यादव, लक्की कसौधन, उत्कर्ष मोदनवाल, सुरेश मौर्य, बेचू, मनोज, अरविंद सहित कई युवा मंडल के सदस्य कांवरिया बंधुओं की आवभगत में लगे रहे। सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस प्रशासन भी पूरी तरह से अलर्ट रहा और व्यवस्था बनाए रखने में सक्रिय भूमिका निभाई।
मुंडेश्वर नाथ महादेव:
मुंडेश्वर नाथ महादेव मंदिर, आजमगढ़ के फूलपुर क्षेत्र में स्थित, एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्राचीन शिवालय है। इसका इतिहास और यहां मनाए जाने वाले उत्सव इसे क्षेत्रीय आस्था का केंद्र बनाते हैं।
मुंडेश्वर नाथ महादेव मंदिर का इतिहास
मुंडेश्वर नाथ महादेव मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है और यह ऋषि दुर्वासा से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मुंडेश्वर नाथ महादेव महर्षि दुर्वासा से पास में अस्थापित है । दुर्वासा धाम, जहां यह मंदिर स्थित है, तमसा और मंजूषा नदियों के संगम पर महर्षि दुर्वासा की तपोभूमि रही है।
दुर्वासा ऋषि को भगवान शिव का रुद्र अवतार माना जाता है और वे अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध थे। उनका आश्रम इस क्षेत्र में स्थित था और उन्होंने यहां वर्षों तक तपस्या की थी। यह भी कहा जाता है कि सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में महर्षि दुर्वासा इसी स्थान पर रहे थे। यहां का शिवलिंग अद्वितीय है क्योंकि कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह एक खंडित शिवलिंग है, फिर भी इसकी पूजा विशेष महत्व रखती है। यह शिवलिंग काशी और अयोध्या से समान दूरी पर स्थित है, जो इसकी धार्मिक महत्ता को और बढ़ाता है। यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और पौराणिक कथाओं का केंद्र है, जो इस क्षेत्र की समृद्ध विरासत को दर्शाता है।
मुंडेश्वर नाथ महादेव मंदिर में मनाए जाने वाले अन्य उत्सव
मुंडेश्वर नाथ महादेव मंदिर में सावन मास के अतिरिक्त भी कई महत्वपूर्ण उत्सव मनाए जाते हैं:
महाशिवरात्रि: यह भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का पर्व है, जिसे यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर मंदिर को भव्य रूप से सजाया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। हजारों श्रद्धालु इस दिन भगवान शिव के विवाहोत्सव में शामिल होने के लिए आते हैं।
- मासिक शिवरात्रि: प्रत्येक महीने की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन भी भक्त मंदिर में आकर भगवान शिव का जलाभिषेक और पूजन करते हैं।
- सोमवार: सावन के सोमवार के अलावा, प्रत्येक सोमवार को भी भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन भी श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंदिर आते हैं।
- प्रदोष व्रत: प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है और त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भी मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है।
- साप्ताहिक और दैनिक पूजा: इन प्रमुख उत्सवों के अलावा, मंदिर में नियमित रूप से दैनिक पूजा और आरती होती है, जिसमें स्थानीय भक्त शामिल होते हैं।
इन उत्सवों के दौरान, मंदिर परिसर में अक्सर मेले का आयोजन भी होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार की दुकानें और धार्मिक सामग्रियां उपलब्ध होती हैं। शिव सेवा संघ जैसे स्थानीय संगठन इन आयोजनों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और भक्तों की सुविधा के लिए जलपान, विश्राम आदि की व्यवस्था करते हैं। ये उत्सव न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं।
