रिक्शे की झांकी से ऐतिहासिक मंच तक, ऐसी है फूलपुर की रामलीला की 60 वर्षों की यात्रा, यादों में जीवंत है पुरानी रामलीला

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कौलेश्वर राम हलवाई का सपना हुआ साकार, आज भी रामलीला के दौरान याद किए जाते है पुराने कलाकार

रिपोर्ट_ मनोज मोदनवाल/ फूलपुर 

फूलपुर, आजमगढ़। नगर में चल रहे रामलीला महोत्सव के बीच जब हम इसके इतिहास के पन्ने पलटते हैं, तो यह सफर एक व्यक्ति के संकल्प और कुछ उत्साही युवाओं की लगन की कहानी बयां करता है। आज जिस दशहरा और रामलीला को देखकर हजारों की भीड़ जुटती है, उसकी नींव 1964 में स्वर्गीय कौलेश्वर राम हलवाई ने छोटे-छोटे बच्चों के साथ एक रिक्शे पर झांकी निकालकर डाली थी।

बात 1964 की है, जब आश्विन मास शुक्ल पक्ष नवरात्रि के पहले दिन कौलेश्वर राम हलवाई ने फूलपुर गल्ला मंडी से एक रिक्शे पर राम, लक्ष्मण, सीता, भरत और शत्रुघ्न की झांकी सजाकर नगर भ्रमण कराया। उन्हीं के नेतृत्व में दशमी के दिन मेले का आयोजन हुआ, जो आज एक ऐतिहासिक मेले का रूप ले चुका है।

1974 में शुरू हुआ रात्रि मंचन का दौर

कौलेश्वर राम से प्रेरणा लेकर, 1974 में बांकेलाल आर्य के संयोजन में नगर के युवाओं ने “नव युवक दल” का गठन किया और गल्ला मंडी में रात्रि रामलीला मंचन की शुरुआत की। इस दल में श्री राम रूंगटा, दत्ताराम सेठ, कृष्ण कुमार पांडे, श्री चन्द हलवाई जैसे कई उत्साही लोग शामिल थे। सरस्वती शिशु मंदिर के संगीताचार्य सूर्यबली मौर्य ने कलाकारों को अभिनय के गुण सिखाकर मंचन शुरू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जब स्थानीय कलाकारों के अभिनय का था बोलबाला

उस दौर में जगरनाथ पाण्डेय के राम, अनिल प्रजापति व चंद्रिका प्रताप यादव के लक्ष्मण,  दत्ताराम सेठ के दशरथ और श्री चन्द हलवाई व सुभाष हलवाई के रावण के किरदार ने लोगों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी। हास्य कलाकार सुरेश हलवाई और कामता प्रसाद कांदु अपनी कला से लोगों को खूब हंसाते थे। इन कलाकारों के अभिनय का ही जादू था कि दूर-दूर से लोग देर रात तक रामलीला देखने आते और भाव-विभोर हो जाते थे।

याद किए जाते हैं पुराने कलाकार

आज कौलेश्वर राम हलवाई, श्री चन्द हलवाई, दत्ताराम सेठ जैसे कई संस्थापक कलाकार हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन रामलीला के मंच पर आज भी उनकी यादें ताज़ा हो जाती हैं। समय के साथ समिति का नाम “नव युवक ज्योति समिति” और अब “रामलीला समिति” हो गया है। इस वर्ष अयोध्या से आए कलाकार मंचन कर रहे हैं, हालांकि स्थानीय लोग पुराने कलाकारों की जीवंत परंपरा को बनाए रखने की सलाह दे रहे हैं। समिति ने समयाभाव का हवाला देते हुए अगली बार स्थानीय कलाकारों को अवसर और सम्मान देने का आश्वासन दिया है।

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