छोटी नदियों का संरक्षण आवश्यक – प्रो. भारती
रिपोर्ट _ चेतन सिंह
सहरसा, बिहार : नदी मित्र इकाई द्वारा आभासी माध्यम से शुक्रवार को नदी संवाद कार्यक्रम का आयोजन कला ग्राम सहरसा में किया गया। संवाद कार्यक्रम में नदी मित्र ओम प्रकाश भारती ने कहा छोटे लोग और छोटी नदियों को अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ेगा, यह भारत का अपना अनुभव है। बड़ी नदियां बाढ़ लाती हैं, खेत, बहियार, गांव को बहा ले जाती हैं, यह उनका भौगोलिक चरित्र है।वह पूज्य हैं।हम माताएं कहते हैं।यह समाज का अपना संधान है।छोटी नदियां बरसाती है, बरसात के दिनों में उग्र होती हैं। लोगों को अपने अस्तित्व का आभास दिलाती हैं ।शेष वर्ष भर समाज के लिए अति उपयोगी है। खेतों में सिंचाई के लिए पानी , जानवरों के लिए पानी मसलन भारत में लगभग सत्तर प्रतिशत सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति छोटी नदियां ही करती है। छोटी नदियां पहाड़, मैदान तथा खेतों से पानी बटोरती है, समेटती है और बड़ी नदियों को पानी देती है। और बड़ी नदियां बड़े और विशाल होने का गौरव प्राप्त करती है। भारत के बड़ी नदियों के उद्गम क्षेत्र को देखिए, वहां उसका जल ग्रहण क्षेत्र देखिए, छोटी नदियों से कम है। गंगोत्री में गंगा और अमरकंकट में नर्मदा के का उदगम धारा संकीर्ण है।छोटी नदियां नहीं हो तो बड़ी नदियां बनेगी ही नहीं।
लेकिन छोटी नदियों के अस्तित्व को लेकर कई संकट है। सरकार द्वारा भू राजस्व सर्वे में अधिकांश छोटी नदियों के लिए एक लकीर खींच दी गयी है। उनके नाम नहीं लिखे गए हैं। उनके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व को कमतर आंका गया है। शहरों में उसे नाला बनाकर उसे कचरे और गंदगी को ढोने का मार्ग बनाया गया। और तो और रिकॉर्ड में उनका नाम नाला ही रख दिया गया है, मसलन चम्पा नाला भागलपुर, अंग जनपद की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व की नदी, नाग नदी नागपुर, अस्सी नाला वाराणसी तथा मीठी नदी मुंबई आदि।
छोटी नदियों के अस्तित्व के संकट का सबसे बड़ा कारण है, उनके वहन क्षेत्र की अधिकांश जमीन रैयत और किसानों की है। सूखे की स्थिति में किसान उसे आबाद करते हैं, फसलें लगाते हैं। शहरों में भू माफिया सक्रिय है, उनका ध्यान शहरों से बहने वाली नदियों पर है। वह औने पौने दाम में किसानों से नदियों की ज़मीन खरीद कर घर बना रहे हैं। शहरों में नदियां सिकुड़ती जा रही है। सरकार को चाहिए इन नदियों के वहन क्षेत्र में आने वाले भूमि का अधिग्रहण कर, किसानों को जमीन के बदले जमीन दें या मुआवजा दे।
नदियों की ज़मीन हड़पने संबंधी कठोर कानून बने। उच्च मार्ग हाइवे, रेलवे, उद्योग के लिए ज़मीन अधिग्रहण करने की नीति, योजना तथा अभ्यास है आपके पास, तो इन छोटी नदियों के लिए क्यों नहीं।छोटी नदियां बड़ी नदियों का आधार है। वे भी संस्कृति के प्रवाह हैं, जीवनदायिनी है। छोटे लोगों की उपेक्षा तो करते रहिए, मानव है संघर्ष उनकी नियति है। नदियां तो निर्जीव है, चल फिर तो सकती है, लेकिन कानूनी लड़ाई लड़ सकती, कोर्ट कचहरी नहीं जा सकती। उसके लिए लड़ना तो समाज को ही होगा।कार्यक्रम में ऑनलाइन माध्यम से देश के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों ने अपने विचार रखे। धन्यवाद ज्ञापन नदी संवाद के संयोजक डॉ. महेन्द्र ने किया।
