बसपा का कमजोर प्रदर्शन
फूलपुर एक्सप्रेस….
आजमगढ़ । आजमगढ़ लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव ने भाजपा सांसद रहे दिनेश लाल यादव निरहुआ को 1,61, 035 मतों से चुनाव हरा दिया। आजमगढ़ लोकसभा को लेकर भाजपा कितना गंभीर है इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो माह में दो बार जिले के दौर पर आए। 10 मार्च को जिले के दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश को आजमगढ़ से ही 34 हजार करोड़ से अधिक की परियोजनाओं की सौगात दी थी।
इसके साथ ही 782 परियोजनाओं का लोकार्पण किया था जबकि 16 मई को चुनावी रैली को भी संबोधित किया था। 10 मार्च को जिले के दौरे पर आए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आजमगढ़ की गारंटी लेते हुए कहा था कि आजमगढ़ आजन्म विकास का गढ़ बना रहेगा और अनंत कॉल तक यहां का विकास होता रहेगा। यह नरेन्द्र मोदी की गारंटी है। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दो माह के भीतर चार बार जिले का दौरा किया। बावजूद इसके इन दौरों को जिले की जनता ने नकार दिया। आजमगढ़ लोकसभा से हार के बाद भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ ने जनता के निर्णय को सर आंखों पर बताते हुए अपने सोशल मीडिया एकाउंट से पोस्ट कर बधाई दी है।
10 मार्च को जिले को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दी थी बड़ी सौगात
2022 के आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव को 3 लाख 12 हजार से अधिक मत मिले थे जबकि धर्मेन्द्र यादव को तीन लाख चार हजार मत मिले थे। जबकि 2022 के लोकसभा उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी रहे शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को दो लाख 66 हजार से अधिक मत मिले थे।
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ को 2022 के चुनाव से 34 हजार से ज्यादा मत मिले। इसके बाद भी भाजपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में आइए समझते हैं कि भाजपा प्रत्याशी के हार के पांच बड़े कारण जिस कारण आजमगढ़ लोकसभा से समाजवादी पार्टी की जीत हुई और भाजपा की हार हुई।
आजमगढ़ का एमवाई समीकरण भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ पर भारी पड़ा। आजमगढ़ लोकसभा के अन्तर्गत आने वाली पांचों विधानसभा सीटों सदर, मेंहनगर, मुबारकपुर, सगड़ी और गोपालपुर में बड़ी संख्या में मुस्लिम और यादव मतदाता हैं। लोकसभा क्षेत्र के यह मतदाता हर हार में भाजपा को हराना चाहते थे। केन्द्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं का लाभ तो यह मतदाता लेते हैं पर वोट के नाम पर भाजपा से दूरी बनाते नजर आते हैं। यही कारण है कि जब डबल इंजन की सरकार चल रही थी उसके बाद भी 2022 के विधानसभा चुनाव में जिले की 10 विधानसभा सीटों पर भाजपा एक पर भी काबिज नहीं हो पाई। इससे समझा जा सकता है कि जिले में जातीय समीकरण कितनीम जबूती के साथ काम कर रहा है।