घर घर की नारी कुंठित है बाहर निकलने को आतुर_ नविता ‘निश्छल’

( रिपोर्चेट-  चेतन सिंह ) सहरसा: नारी सशक्तिकरण के दौर में आज महिलाएं जीवन की हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर कदमताल कर रही है। वहीं दुर्गम एवं कठिन से कठिन असाध्य कार्यों को बखूबी अंजाम दे रही है। आज महिलाएं अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के आधार पर नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं।कोसी प्रमंडल के साहित्यकार नविता ठाकुर निश्चल ने बताया कि वर्तमान समय में भी नारी को उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। जिसके कारण महिलाएं कुंठित होकर अपने कल्पित स्वर को अंजाम नहीं दे पा रही है। जिसके कारण प्राकृतिक असंतुलन जैसे गंभीर परिणाम देखने को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि अब तक उनकी विभिन्न विषयों पर बहुत सारी रचनाएं प्रकाशित हुई है। और निरंतर मेरे द्वारा रचनाओं की जा रही है। जो विभिन्न समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो रहे हैं।उसी कड़ी में उन्होंने नारी की भावना को समझते हुए उसकी समस्याओं को अपने कविताओं के माध्यम से सशक्त अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने कहा की नारी केवल हर मांस का बना हुआ सुंदर पुतला ही नहीं है। अपितु उसके अंदर भी भावनाएं कूट-कूट कर भरी हुई है।जिसे पुरुषों को अवश्य समझना चाहिए।जिससे नारी भी अपना उन्मुक्त जीवन जी कर हौसला के साथ नई उड़ान भरे।

नविता ठाकुर ‘निश्छल’

नारी भावना ( स्त्री )

  • मुझे मत लक्ष्मी समझो
    न समझो माँ सरस्वती
    न मूझे काली समझो
    न समझो दुर्गा भगवती
    बस मुझे समझ लेना तुम स्त्री
    न समझना मुझे अपनी संपत्ति।।
  • मेरी भावनाओं को सदा परखना
    जीवन में तुम्हे मिलेगी सदगति।।
    प्रेम प्रवाह में जो सीखे बहना।
    उसे त्याग बलिदान की दिखेगी मूर्ति।।
  • जो नारी भावनाओं को दुतकारते
    जो उपयोग की वस्तु समझ निहारते
    उसे केसे मिलेगी सदगति
    बस नारी की यही है उक्ति।।
  • जो नारी भावनाओं को दुतकारते
    जो उपयोग की वस्तु समझ निहारते
    उसे केसे मिलेगी सदगति
    बस नारी की यही है उक्ति।।
  • नारी जीवनी अनुभव को जहाँ तक हमने है समझा
    मान सम्मान का ध्यान जब नर ने नहीं किया
    तभी नारी ने स्वाभिमान के लिए समय समय पर विद्रोह किया।
    संबंध के मोहजाल को तंग होकर नारी ने परित्याग दिया।।
  • सरस्वती लक्ष्मी दुर्गा काली का बस नाम दिया।
    इतना कहते रहते सदा ही हमने सम्मान किया।।
    मंचों पर सम्मान की बातें घर में उपयोग की वस्तु बनाके रखा है।
    विदुषी नारियों की ज्ञान अवहेलना कर कहते तुम समझती नहीं अधिकांश ने समझये रखा है।।
  • घर घर की नारी कुंठित है
    बाहर निकलने को आतुर कल्पित स्वर।
    विचार अभिव्यक्ति हेतु ठिठुरती रहती है नारी भीतर ही भीतर।।
    नविता ठाकुर ‘निश्छल’

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