आधुनिक जीवनकी भाग-दौड़ में फास्ट फूड के चलते पौष्टिक तत्वोंकी कमी से जूझते लोग,

फास्ट फूड के चलते पौष्टिक तत्वोंकी कमी से जूझते लोग आधुनिक जीवनकी भाग-दौड़में हम अपने भोजन पर उतना ध्यान नहीं देते जितना हमें स्वस्थ रहनेके लिए देना चाहिए। इसीलिए आये दिन हमारे शरीरमें कोई-न-कोई दिक्कत उत्पन्न होती रहती है। रोजमर्राके खाने में पौष्टिक तत्वोंकी कमीके कारण अक्सर बीमार पड़ने पर डाक्टर भी हमें ताजी और शुद्ध चीजें खानेकी ही सलाह देते हैं। इसके साथ हमारी डाइटको हैल्थ फूडपर आधारित होनेकी भी सलाह देते हैं। अपनी सेहतकी चिंता करते हुए हम बाजार में हैल्थ फूडके नामपर मिलनेवाली वस्तुएं खरीदनेकी होड़में लग जाते हैं परन्तु यहां सवाल उठता है कि क्या हैल्थ फूडके नामपर बिकनेवाले डिब्बा बंद या सील बंद उत्पादन वास्तव में हमारे शरीरके लिए हैल्दी हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियोंके उत्पादनोंने बाजारमें एक ऐसा मायाजाल बिछाया है जिसके शिकंजे में हम बड़ी आसानी से फंस जाते हैं। यह कम्पनियां अपने उत्पादनोंको हैल्थ फूडका जामा ओढ़ा कर उपभोक्ताओंको इसकी लत लगाने में कामयाब हो जाती हैं। आम लोग भी इनकी मार्केटिंग और आकर्षक विज्ञापनके झांसे में बहुत आसानीसे आ जाते हैं। बिना यह सोचे-समझे कि क्या इन हैल्थ फूड्समें वह सभी पौष्टिक तत्व सही मात्रामें हैं, जो हमारे शरीरके लिए जरूरी हैं। क्या हमें जिन तत्वोंका परहेज करना चाहिए वह इन

हैल्थ फूड्स में हैं। क्या बाजार में अपने प्रतिद्वंद्वी से आगे निकलनेकी होइमें ये कम्पनियां जनताको जंक फूडकी आदत ती नहीं डाल रही हैं। ऐसे उत्पादनोंका सेवन करनेसे हमारी सेहत बेहतर होनेकी बजाय और खराब हो जाती है। सबसे पहले बात करते हैं रोजमर्राके खानेमें इस्तेमाल होनेवाली ऐसी वस्तुकी जो आम तौरपर हर घरमें पायी जाती है। आज हर घरमें सुबहके नाश्ते में ब्राऊन ब्रेडका चलन बढ़ गया है। विज्ञापन के कारण इसे हाइट ब्रेडका एक विकल्प कहा जाने लगा है। जैसा कि इसके नामसे ही जाना जाता है, यह ब्राऊन है यानी कि यह मैदेसे नहीं, बल्कि आटेसे बनी है। परन्तु असलमें आप यदि इसका पैकेट देखें तो इसमें आपको कभी भी सौ प्रतिशत आटा नहीं मिलेगा ।इसमें आपको आटेके साथ काफी मात्रामें मैदा, चीनी, नमक, वैजीटेबल ऑयल और प्रिवेंटिव भी मिलेंगे। यानी दावेसे उलट यह आटा ब्रेड वास्तवमें सौ प्रतिशत आटेसे नहीं बनी। मैदे और चीनीके नुकसान तो सभीको पता हैं। यह आपके शरीरमें वजन बढ़ानेका काम करते हैं। मैदाखा ने से कब्जकी दिक्कत भी होती है। उसी तरह प्रिजर्वेटिव खानेसे शरीरमें कैंसर जैसे रोग होने का खतरा भी बढ़ जाता है तो फिर यह हमारे शरीरके लिए हैल्दी कैसे हुई। आजकल आपने यह भी देखा होगा कि कई उत्पादों पर फैट फ्री या लो फैटका ठप्पा लगा होता है। ऐसे कई बिस्कुट, लैक्स और अन्य उत्पाद बाजार में हैं जो फैट फ्री या लो फैट होनेका दावा करते हैं। फैट फ्री या लो फैटके लालचमें हम इन उत्पादोंके प्रति आकर्षित हो जाते हैं और इनके आदी हो जाते हैं। परन्तु क्या आपको पता है कि ऐसे ज्यादातर उत्पादोंमें साधारण मात्रासे कहीं अधिक मात्रामें शूगर यानी चीनीका प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही इनमें फैटका विकल्प देनेके लिए कैमिकल द्वारा प्रोसैस किये गये तत्व भी डाले जाते हैं। इन कैमीकल तत्वोंका हमारे शरीरपर बुरा असर पड़ता है। जहांतक हो सके हमें इन चीजोंसे बचना चाहिए।

आजकलके युवा वर्ग में एक नये पेयकी मांग बढ़ती जा रही है और वह है एनर्जी ड्रिंक आकर्षक विज्ञापनोंकी आइमें युवाओंको ऐसे एनर्जी ड्रिंकका आदी बनाया जा रहा है। कैफीन होनेके कारण, इन्हें पीनेसे हमें कुछ क्षणके लिए ताजगीका अहसास होता है। अधिक मात्रामें प्रोटीन लेना भी हमारी सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। अधिक प्रोटीन केवल ज्यादा खेल-कूद करनेवाले या वेट लिफ्टिंग करनेवालोंको किसी विशेषज्ञकी सलाहपर ही लेना चाहिए, आम इनसानको नहीं। कोरोनाके डरसे हम किसी भी बाजारू वस्तुका सेवन नहीं कर रहे थे, केवल घरका बना भोजन ही खा रहे थे। हमें घरका बना पौष्टिक भोजन ही खाना चाहिए, बहुराष्ट्रीय कम्पनियोंके मायाजाल में नहीं फंसना चाहिए।

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