विशेष 15 दिनों में ज्यादातर हिंदू धर्म से जुड़े लोग कोई भी शुभ कार्य जैसे शादी विवाह गृह प्रवेश मकान निर्माण नए बिजनेस की शुरुआत जमीन आदि की खरीद नहीं करते

सनातन हिंदू धर्म में जीवन जीने की पद्धति में जहां प्रकृति का समावेश है वही जीवित मनुष्य के साथ-साथ मृत व स्वर्गवासी अपने पूर्वज परिजनों को भी एक सम्मान के साथ कर्तव्य रूप में उनका मोक्ष प्राप्ति के लिए सनातन धर्मी कार्य अनुष्ठान करते हैं। जिसमें भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है जो 15 दिन बाद पड़ने वाली अश्वनी महीने की अमावस्या तक चलती है इस विशेष पूजन प्रक्रिया में ईश्वर से भी पहले अपने स्वर्गवासी परिजनों के लिए पूजन व प्रार्थना किया जाता है क्योंकि माना जाता है इस विशेष 15 दिन का समय ईश्वर ने हम मनुष्यों के पितरों को सौपा है। इस विशेष दिनों में देश के कोने-कोने से लोग गया जी, हरिद्वार ,मथुरा,उज्जैन ,प्रयागराज ,अयोध्या वाराणसी, सहित अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों वह संगम नदियों के तटों पर पिंडदान करते हैं। यह विशेष पूजा अनुष्ठान पितृ पक्ष के दौरान मृत पूर्वजों के लिए पिंडदान के रूप में किया जाता है। पिंडदान को एक दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि देने का अनुष्ठान माना जाता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि पिंडदान के द्वारा ही हमारे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पिंडदान के समय मृतक के लिए जौ या चावल के आटे को गूंथ कर गोल आकृति वाले पिंड बनाए जाते। खास तौर पर देखा गया है कि अपने पूर्वजों को विशेष पूजन के लिए परिवार में बड़े या सबसे छोटे पुत्र को शास्त्र संगत माना गया है। वहीं बताया गया है कि पिता का श्राद्ध बेटे के द्वारा होना चाहिए।

बेटा न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है।

पत्नी न हो तो सगा भाई और उसके भी अभाव में अपने कुल के लोग कर सकते हैं। एक से ज्यादा बेटे होने पर सबसे बड़ा पुत्र ही श्राद्ध करता है। इसके ना करने पर छोटा बेटा अगर वह भी नहीं करता तो विचला बेटा कर सकता है साथ ही बेटी का पति और नाती भी श्राद्ध के अधिकारी हैं, जब की दामाद इस कार्य के लिए वर्जित है। इस विशेष पक्ष को आम बोलचाल में पितरों को पानी देना भी कहा जाता है जिसमें पानी देने वाला पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए स्वस्थ मन, स्नान खान-पान के साथ पूरे 15 दिन तक सर्वप्रथम पितरों को ही नमन करके उनको पानी देता है। यह प्रक्रिया दो परिस्थितियों में वर्जित होता है जिसमें या तो उसे घर में कोई मांगलिक कार्यक्रम जैसे शादी विवाह संपन्न हुआ हो जिसमें पितरों को भी आमंत्रित किया जाता है साथ ही कोई मौत के बाद उसे परिवार में तेरा ही शुद्ध श्राद्ध आदि का आयोजन अमुक वर्ष में हो चुका हो उसमें भी इस प्रक्रिया को नहीं मनाया जाता जबकि ज्यादातर परिवारों में उम्र दराज हो चुके वरिष्ठ परिजन गया जी को या अन्य उसे स्थान को जाकर पिंडदान का विशेष अनुष्ठान करते हैं। इस विशेष 15 दिनों में ज्यादातर हिंदू धर्म से जुड़े लोग कोई भी शुभ कार्य जैसे शादी विवाह गृह प्रवेश मकान निर्माण नए बिजनेस की शुरुआत जमीन आदि की खरीद नहीं करते।

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