प्रयाग में एम्स की वैश्विक जरुरत…..

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श्रद्धा से श्रद्धालु उस संगम के पावन जल में डुबकी मारते नहीं अघाते !

संपादकीय….. 
रामकेश  एम. यादव ( कवि, लेखक व गीतकार )

वसुधैव कुटुंबकम् का सही मायने में यदि हमको पर्याय समझना है तो संगम तट पर अमावस्या का मेला का रेला देखने मात्र से वसुधैव कुटुंबकम् का पर्याय समझ में आ जाता है जहाँ पर समूचे विश्व से श्रद्धालु बिना किसी भेदभाव के एक साथ एक जगह श्रद्धा की डुबकी लगाने के लिए महीनों तक कल्पवास करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और उस समय क्या सरहद, क्या जाति-पात, क्या भाषा, सारे बंधन दरकिनार हो जाते है तथा उस समय प्रयागराज का संगम तट अपने आप में स्वयं एक विश्व का प्रतिनिधित्व करता नजर आता है जिसकी गोंद में जान की परवाह किए बगैर जान हथेली पर रखकर श्रद्धा से श्रद्धालु उस संगम के पावन जल में डुबकी मारते नहीं अघाते! इसी वजह से वे बार-बार डुबकी लगाकर सब कुछ पा जाना चाहते हैं। संगम का वो नजारा,वो मंजर देखते ही बनता है। ऐसा नजारा विश्व के किसी अन्य कोने में कहीं नहीं दिखता।

अगर हम मीडिया की माने तो पिछले महाकुंभ में दुनिया के कोने-कोने से करीब 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाया। इन दूर-दराज देशों से आए श्रद्धालु विभिन्न जलवायु,वातावरण से होने के कारण कभी-कभी डुबकी लगाने के साथ-साथ उनको अपने स्वास्थ को इस कड़ाके की सर्दी में स्वस्थ रखना भी एक मुश्किल भरा काम होता है क्योंकि जिस समय संगम में विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला कुंभ का आयोजन होता है उस समय प्रयागराज में कड़ाके की सर्दी पड़ती है जिसमें ब्लड का थक्का जमने की प्रबल संभावना बढ़ जाती है जिससे ब्रेन हैमरेज,हार्ट अटैक जैसी गंभीर जानलेवा बीमारी के गिरफ्त में आने की भी प्रबल संभावना बढ़ जाती है इसके बावजूद भी हमारी सरकारें आज तक इस विषय पर कभी गंभीर निर्णय लेने की रुचि नहीं दिखाई जो कि दुर्भाग्य पूर्ण है।

यहाँ समझने वाली बात यह है कि कभी-कभी जब कोई श्रद्धालु ऐसी परिस्थितियों का शिकार होकर गंभीर रोग के चपेट में आ जाता है,तो उसे समुचित उपचार न पाने की स्थित में जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है, ये चिंता का विषय है। जरूरत इस बात की है कि केंद्र सरकार इस विषय पर कोई त्वरित निर्णय ले जिससे विश्व के इस सबसे बड़े धार्मिक मेले में बिना किसी परवाह के श्रद्धालुओं की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा हो सके।
गौरतलब है कि इस संगम तट पर आयोजित होने वाले विश्व के इस सबसे बड़े धार्मिक मेले में पधारने वाले विश्व के कोने-कोने से श्रद्धालुओं के लिए उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं को मुहैया कराने के लिए युद्ध स्तर पर लगभग सन 2007 से अनवरत अभियान चलाने वाले प्रखर समाजसेवी रामचंद्र यादव एडवोकेट रात-दिन मेहनत कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश जनपद प्रयागराज के ग्राम जगदीशपुर निवासी रामचंद्र यादव एडवोकेट ने प्रयागराज में कल्पवासी श्रद्धालुओं के लिए उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं को मुहैया कराने के लिए लगभग एक दशक से भी अधिक समय से भागीरथी प्रयास जारी रखे हैं। बताना यहाँ मुनासिब होगा कि रामचंद्र,प्रवासी भारतीय कल्पवासी श्रद्धालुओं व अन्य कल्पवासी श्रद्धालुओं के लिए प्रयागराज में एम्स की स्थापना के लिए महामहिम राष्ट्रपति जी से लेकर प्रधानमंत्री,मंत्री,सांसद विधायक तक का दरवाजा खटखटाए हैं जो आज भी जारी है।

प्रयागराज में कई विभागों के प्रमुख कार्यालय स्थित होने के साथ-साथ एशिया का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय इलाहाबाद भी प्रयागराज में ही स्थित है जिससे प्रयागराज में माननीय न्यायधीशों, विद्वानों,अधिवक्ताओं व प्रदेशभर के अधिकारियों, कर्मचारियों, वादकारियों का हमेशा जमावड़ा भी बना रहता है। अगर एम्स वहाँ बनता है,तो प्रयागराज सड़क मार्ग से बिहार,मध्यप्रदेश के कई जनपदों से जुड़े होने के साथ-साथ वो रेल,वायु तथा जल मार्ग से भी जुड़ा है जिससे अन्य प्रदेशों से भी गंभीर रोग से पीड़ित रोगियों को भी प्रयागराज पहुँचने में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा और उन्हें समुचित उपचार देकर इस खूबसूरत दुनिया का आनंद लेने के लिए पुनः बचाया जा सकता है,कितनी अद्भुत और सुन्दर बात होगी।

बड़े ही दुःख के साथ मुझे यहाँ ये उल्लेख करना पड़ रहा है कि प्रयागराज से मां गंगा के आंचल के सांसद व विधायक क्रमशः देश व प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत में प्रतिनिधित्व करते हैं फिर भी प्रयागराज उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित क्यों ? यह बहुत ही चिंता की बात है जिस पर माननीय प्रधानमंत्री जी को गंभीरता से अमल करना चाहिए। हिंदुस्तान के उन प्रदेशों के माननीय मुख्यमंत्रियों को भी प्रयागराज में एम्स स्थापना मांग की पहल करनी चाहिए जिनके प्रदेशों से भोली-भाली श्रद्धालु जनता कई महीनों के लिए कल्पवास करने हेतु संगम तट पर जाती है जिनके स्वास्थ का पुख्ता इंतजाम होना चाहिए जिससे आवश्यकता पड़ने पर अतिशीघ्र त्वरित समुचित उपचार उपलब्ध हो सके।

एम्स की मांग इसलिए की भी जा रही है कि यहाँ दुनिया के श्रद्धालु जमा होते हैं। यह बात हमारे देश की मर्यादा से भी जुड़ी है। हमारा देश एक भारी भरकम आबादी वाला देश है। कोरोना काल में हॉस्पिटल की जो भारी कमी महसूस की गई, किसी से छिपी नहीं है। दवाओं से लेकर,डॉक्टर तक, नर्स से लेकर ऑक्सीजन तक, श्मशान से लेकर कंधे तक, कहाँ-कहाँ देश की आम जनता खून का आँसू नहीं रोई? आबादी के चश्में से भी यदि हम देखें,तो उत्तरप्रदेश की आबादी चीन, अमेरिका इंडोनेसिया के बाद एक विशाल आबादी के रूप में इसे हम देख सकते हैं जबकि यह एक प्रदेश है।
कई बार अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री जी ये बोल चुके हैं कि उत्तरप्रदेश सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देनेवाला प्रदेश है मगर उसे लाभ क्या मिला? न तो आईटी हब और नहीं ही उद्योगों का जाल? आम पढ़े-लिखे डिग्री धारी और दिहाड़ी मजदूर रोजी-रोटी के लिए कहीं और ही अपना रुख करते हैं जहाँ अपना खून-पसीना बहाकर तथा अपना अमूल्य मत देकर ठगे-से रह जाते हैं।

कौन अपने माता-पिता और परिवार को छोड़कर दूसरे जगह जाना पसंद करेगा? जब कोई कमानेवाला आदमी कहीं बाहर कमाने जाता है, तो उसके जिगर के सौ टुकड़े होते हैं। बाहर वो बेचारा बेइज्जत भी होता है। यदि पूर्व सरकारें भी मिल,फैक्ट्री, आईटी हब,मेडिकल आदि क्षेत्रों में हाथ-पांव मारी होती,तो आज उत्तरप्रदेश सबसे आकर्षक और मजबूत प्रदेश होता। आज प्रयागराज की आबादी करीब सत्तर लाख के आसपास होगी और स्वास्थ्य के नाम पर स्वरूपरानी हॉस्पिटल के अलावा कुछ प्राइवेट हॉस्पिट ही हैं जो करोड़ों आस्था की डुबकी लगाने वालों के लिए नाकाफी साबित हो रहे हैं। एम्स हॉस्पिटल अपनी बेहतरी के लिए जाना जाता है। उसके सारे स्टॉफ हमेशा सक्रिय रहते हैं। मेडिकल सुविधाएँ बेहद अच्छी होती हैं। एक से बढ़कर एक डॉक्टर उसमें काम करते हैं।
आधुनिक साज-सज्जा से वह लैस रहता है। अगर हम थोड़ी-सी पीछे नजर डालें,तो गंगा,यमुना,सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर बसा वह प्रयागराज पंद्रहवीं शताब्दी में इलाहाबाद के नाम से जाना जाने लगा और एक लंबे काल खण्ड के बाद फिर 2018 में उत्तरप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री आदरणीय योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद का नाम बदलकर फिर से प्रयागराज कर दिया। इसके पीछे की सच्चाई यह है कि माना जाता है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के पश्चात् प्रथम यज्ञ किया। इसी प्रथम यज्ञ के ´प्र ´और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग रखा गया। वह पवित्र शहर अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बेहद चिंतित है,उसके चेहरे पर अब मुस्कान लाने की जरुरत है। भारत सरकार व नीति निर्माताओं को अब ये समझ लेना चाहिए कि वहाँ अविलम्ब एक एम्स की स्थापना हो। वो तात्कालिक व्यवस्था स्थायी हल नहीं। प्रयागराज के अलावा दुनिया के कोने से आए पर्यटकों,श्रद्धालुओं तथा अन्य सभी जरूरतमंदों का भला हो। अच्छे कामों के लिए वर्तमान सरकार सभी के दिलों में जगह बना चुकी है, इसीलिए इससे उम्मीद कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है।

बस एक इच्छा-शक्ति की जरुरत है। आज दुनिया के अच्छे देशों में स्वास्थ्य सुविधाएँ बहुत अच्छी हैं। उस तुलना में हम आज भी काफ़ी पीछे हैं। सुन्दर आंकड़ों से समस्या का निदान दिखाना, जायज नहीं। प्राइवेट हॉस्पिटल तथा डॉक्टर आम गरीब जनता को मनमाना लूट रहे हैं। यदि सरकारी हॉस्पिटल गाँव-गाँव बन जाएँ, तो कितनी सुखद बात होती।

मिसाल के तौर पर आज हमारे आजमगढ़ जनपद में आम-पब्लिक के लिए कितने निरोलोजिस्ट हैं? इसी तरह से दूसरे जिलों में भी कमोबेस यही स्थिति है। ज्यादा तबीयत बिगड़ने पर लोगों के गहने तक बिक जाते हैं। अभिभावक कंगाल हो जाते हैं। खून का आँसू रोते हैं, उनका आँसू पोंछनवाला कोई तो होना चाहिए। ऐसे सदर हॉस्पिटल हर जिले में बने हैं जो नाकाफी हैं। आयुष्मान योजना अच्छी है लेकिन इस दिशा में और बड़ा कदम उठाने की आवश्यकता है। इसीलिए कहा गया है कि सरकार माई-बाप होती है। हर राज्य सरकारें इस दर्द को समझें।

मेरे ख्याल से संयुक्त राष्ट्र संघ के स्वास्थ्य संगठन को भी इस दिशा में पहल करते हुए प्रयागराज में एम्स की स्थापना के लिए आगे आना चाहिए और मदद के तौर पर मानवीय कदम उठाना चाहिए जिससे विश्व पटल से पधारे कल्पवासी श्रद्धालुओं को स्वास्थ से संबंधित किसी भी प्रकार की दिक्कतों का सामना न करना पड़े और वह संगम अपने अमृत जल से सभी को मुक्ति व मोक्ष प्रदान करता रहे।

रामकेश  एम. यादव ( रॉयल्टी प्राप्त कवि, लेखक व गीतकार) मुंबई

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