वैश्विक है आजमगढ़ का इतिहास और भूगोल

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आजमगढ़। एक ऐसा जिला जिसको अभी तक कई नजरिए से देखा जाता रहा है जिस में सर्वाधिक अगर देखा जाए तो आजमगढ़ को अंडरवर्ल्ड डॉन माफियाओं बाहुबली का गढ़ कहां जाता रहा है लेकिन दूसरे पहलू को पूरी तरीके से प्रदर्शित नहीं किया जा सका और आजमगढ़ की इतिहास भूगोल को जानना हमारी इस 21वीं सदी के पीढ़ी को आवश्यक है। आजमगढ़ को कहीं-कहीं आर्यमगढ भी कहा जाता है। आजमगढ़ शहर अपनी साहित्य, संस्कृति, शिक्षा के लिए आरंभ से ही मशहूर रहा है। आजमगढ़ को यह गौरव प्राप्त है कि वह राहुल सांकृत्यायन, अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, मौलाना शिबली नोमानी और कैफ़ी आज़मी जैसे महापुरुषों की जन्म- स्थली रही है। आज भी यहाँ से तमाम राजनेता, प्रशासक, शिक्षाविद, साहित्यकार, कलाकार, व्यवसायी, खिलाडी देश-दुनिया में अपने नाम का डंका बजाते नजर आते हैं। मध्य प्रदेश के राज्य पाल ,उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे राम नरेश यादव यहीं हैं, तो चंद्रजीत यादव, अमर सिंह जैसे तमाम चर्चित राजनेता भी यहीं की पैदाइश हैं। मशहूर फिल्म अभिनेत्री और सोशल एक्टिविस्ट शबाना आज़मी का यहाँ से पुराना रिश्ता है। महर्षि दुर्वासा, दत्तात्रेय, वाल्मीकि, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, शिक्षाविद अल्लामा शिबली नोमानी, कैफी आजमी और श्यामनारायण पांडेय के आदि का सम्बन्ध आजमगढ़ से रहा है। लेकिन अगर इतिहास पर निगाह डालें तो सतयुग द्वापर और कलयुग तीनों युगों में इस जिले की धरती की पहचान रही है। और इसके सबसे बड़े प्रमाण महा ऋषि दुर्वासा चंदमा ऋषि और दत्तात्रेय की तपोस्थली है। राजा जन्मेजय की यज्ञ स्थली अवंतिकापुर ,दुर्वासा धाम, रानी की सराय ,मेहनगर यह सब जिले की इस गाथा के साक्षी हैं।

महर्षि दुर्वासा की तपोस्थली आजमगढ़: यह धरती ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है। त्रिदेवों ने इस जगह को कर्मभूमि तथा तपोस्थली बनाकर इसका मान बढाया। आजमगढ़ को ऋषि दुर्वासा की भूमि के रूप में भी जाना जाता है, जिनका आश्रम फूलपुर,निजामाबाद, बुढ़नपुर मध्य तहसील में स्थित है क्योंकि यहां संगम होने की वजह से जिन्हें 3 नदियों के सीमा रेखा के अन्तर्गत ही जाना जाता है मंजूषा मझुई, तवांश,कुंवारी जो फूलपुर तहसील मुख्यालय से 6 किलोमीटर (3.7 मील) उत्तर में तमसा और मझुए नदियों के संगम के पास था। भगवान शिव के अंश महर्षि दुर्वासा तमसा नदी के किनारे अपनी तपोस्थली त्रेता युग में बनाया था, ये आज भी आस्था का प्रमुख केंद्र है। जहां कार्तिक पूर्णिमा को विशेष स्नान जिसे नहान कहा जाता है साथ यह विशाल बड़ा मेला जो 2 से 3 दिन तक चलता है लगवाया जाता है। रामायणकालीन कोशल राज्य आजमगढ़: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रामायण में यह क्षेत्र कोशल राज्य का एक हिस्सा था। ऋषि विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को सरयू (घाघरा) के किनाने-किनारे लेकर बलिया होते हुए जनकपुर सीता स्वयंवर में ले गए थे। जनश्रुति के अनुसार वे एक रात्रि सरयू तट पर दोहरीघाट में विश्राम किए थे, इसीलिए इसका नाम दोहरीघाट पड़ा।आज़मगढ़ 1665 ई. में फुलवारिया नामक प्राचीन ग्राम के स्थान पर आजम ख़ाँ जो कि राजा विक्रमजीत सिंह के पुत्र थे उन्होंने अपने नाम से जिले का नाम दिया। विक्रमजीत सिंह गौतम के धर्म परिवर्तित पुत्र आजम शाह, जो एक शक्तिशाली जमींदार था, शाहजहां के शासनकाल के दौरान 1665 ई. में आजमगढ़ की स्थापना करवाई थी। इसी कारण इस जगह को आजमगढ़ के नाम से जाना जाता है। लेकिन धर्म परिवर्तित कर मुस्लिम बने हरिवंश सिंह गौतम के दांपत्य जीवन पर भी इसका प्रभाव पड़ा। जिसके चलते आज भी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में एक ऐसी भी जगह है जहां आज तक एक भी मस्जिद नहीं बन सकी. ऐसा भी नहीं है कि अभी तक मस्जिद बनाने का कोई प्रयास न किया गया हो अनेकों रास्ते अपनाते हुए मुस्लिम वर्ग द्वारा मस्जिद बनाने के कई प्रयास हुए लेकिन सफलता किसी के हाथ नहीं लगीं. रानी की सराय नामक इस शहर को मेहनगर के राजा रहे हरिवंश सिंह गौतम की पत्नी रानी रतन ज्योति कुंवर ने बसाया था रानी रतन ज्योति कुंवर ने राजा हरिवंश सिंह गौतम के सामने एक शर्त और रखी की ‘रानी की सराय’ में कभी भी कोई मस्जिद न बनाई जाए. राजा इसके लिए राजी हो गाए. रानी के नाम जो वसीयत लिखी गई उसमें यह लिखा गया कि सेठवल में कोई मस्जिद, मकबरा या इमामबाड़ा नहीं बनाया जा सकता है। हिंदू देवी देवताओं में पूरी आस्था रखने वाली रानी रतन ज्योति कुंवर ने रानी की सराय में हनुमान मंदिर, सराय, पोखरा और कुआं बनवाया था. साल 1629 में निर्मित इन पोखरों और हनुमान मंदिर को देखने दूर दूर से लोग आते है। स्वतंत्रता आंदोलन के समय में भी इस जगह का विशेष महत्व रहा है।1857 की स्वतंत्रता क्रांति में भी आजमगढ़ ने भाग लिया स्वतंत्रता आंदोलन के समय में भी आजमगढ़ का विशेष महत्व रहा है। 1857 में स्वतंत्रता की पहली लड़ाई में भी शहर ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत के स्वतंत्र होने के बाद, लगभग 472’आज़मगढ़ियों को स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए, उनके या उनके परिवार के सदस्यों को दिए गए ताम्र पदक से 1973 मे सम्मानित किया गया। 3 अक्टूबर, 1929 को महात्मा गांधी ने आजमगढ़ का दौरा किया और श्रीकृष्ण पाठशाला में एक सभा का आयोजन हुआ जिसमें लगभग 75000 लोगों ने हिस्सा लिया तथा 5000 रुपये गांधी जी को भेंट किया गया।महात्मा गांधी की कई यात्रा और भाषण आजमगढ़ में हुई 1800 से 1947 के अंत में, जब भारत अपनी आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ रहा था, आजमगढ़ महात्मा गांधी की कई यात्राओं और भाषणों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। भारत छोड़ो आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका आजमगढ़ का था स्वतंत्रता आंदोलन के लिए भी पहचाना जाता है, गांधीजी के कहने पर सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अतरौलिया खंड के रामचरित्र सिंह व उनके नाबालिक बेटे सत्यचरण सिंह ने एक साथ अंग्रेजो का डटकर मुकाबला किया और गोली खायी। पिता पुत्र का एकसाथ स्वतंत्रा के आंदोलन में कूदने का दुर्लभ ही उदाहरण देखने को मिलता है। जिसमे दो सगे भाइयों का भी योगदान स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है। कुंवर ¨सह की टुकड़ी को पनाह देने वाले आजमगढ़ के खांडसारी के बड़े व्यवसायी गोगा साव व भीखी साव। दोनों सगे भाई थे। इन दोनों सपूतों की दास्तान आज भी हर घर में बड़े जज्बे के संग युवाओं को सुनाए जाते हैं।

आज आजमगढ़ जिले में आठ तहसीले है। जो लालगंज, सदर, सगड़ी, मेंहनगर, बूढ़नपुर, निजामबााद,मार्टीनगंज व फूलपुर है। सबसे बड़ी तहसील निजामबााद है। आज़मगढ़ में 22 ब्लाक 10 विधानसभा वह 2 लोकसभा सीट है, 3 नगरपालिका व 12नगर पंचायत भी है। आबादी भी 2011 के जनगणना के अनुसार 4,613,913 के लगभग है। जिसमें हिंदू 84 प्रतिशत मुस्लिम 15 प्रतिशत अन्य धर्म के 1 प्रतिशत आबादी है जो की अब इस सांख्य में काफी फेर बदल हो गया है। राजनीतिक दृष्टिकोण से यह जिला समाजवादियों का गढ़ रहा है उसका एक नमूना यह है कि मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रधानमंत्री मोदी के आंधी में भी जिले की दसों विधान सभा सीटों पर समाजवादी पार्टी विजयी रहा। दो लोक सभा सीटों में एक पर भाजपा तो दूसरे पर बसपा जीत दर्ज की है।

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